'भोज' अंगिका लोकगीत
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और खाने के लिए जब बैठते थे तो शुरू से लेकर अंत तक उनको गाली ही पड़ती थी
और अंत में जैसे खा के उठने लगते थे तो एक गाली दी जाती थी
मेरी माँ गाती थी एक
'पराय' मने 'दूर'
"जों जों समधी होलो पराय
हांथ गोड़ बांधी दिहो डेंगाय
पकड़िहो लोगो चोरवा भागल जाय"
अब गीत का मुख्य चीज यही है
अब जैसे तोहरे पापा समधी लगे तो
"ब्रह्मदेव बाबू हॉलो पराय"
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